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________________ १२३ yaman श्री नित्यमह पूजन निज तत्वोपलब्धि के बिन सम्यक्त्व नहीं होता । सम्यक्त्वोपलब्धि के बिन सिदत्व नहीं होता ।। और लोक के सर्व साधुओ को मैं सविनय नमन करूँ। नित प्रातः सामायिक करके तत्व ज्ञान का यतन करूँ।। भाव द्रव्य ले भक्तिभाव से मैं श्री जिन मन्दिर जाऊँ। जिन प्रभु का प्रक्षाल करूँ मैं श्री जिनवर के गुण गाऊँ ।। शुद्ध भाव से णमोकार जप सहस्त्रनाम पढ हर्षा। श्री जिनदेव नित्यमह पूजन करके नायूँ सुख पाऊँ । शाति पाठ पढ क्षमा याचना कर शुद्धातम को ध्याऊँ। वीतराग जिन चरणों मे निज प्रभु की परम शरण पाऊँ ।। ॐ ह्रीं श्री नित्यमह समुच्चयजिन अत्र अवतर अवतर सवौषट्, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठठ, अनमम समिहितो भव भव वषट् । निज भावो का प्रभु जल ले, पाँचों परमेष्ठी उर लाऊँ। जन्म मरण का नाश करूँ मैं देव शास्त्र गुरु गुण गाऊँ ।। तीस चौबीसी बीस जिनेश्वर कृत्रिम - अकृत्रिम जिनध्याऊँ। सर्व सिद्ध प्रभु पचमेरू नन्दीश्वर गणधर ऋषि भाऊँ ।। सोलहकारण दशलक्षण रत्नत्रय नव सुदेव ध्याऊँ । चौबीसो जिन ढाई द्वीप अतिशय निर्वाण क्षेत्र ध्याऊँ।।१।। ॐ ह्री श्री नित्यमहसमुच्चयजिनेभ्यो जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जल नि निज भावो का चन्दन लेपाचो परमेष्ठी उर लाऊँ। भव ज्वाला की तपन मिटाऊँदेव शास्त्र गुण गाऊँ तीसचौबीसी ॥२॥ ॐ ह्री श्री नित्यमह समुच्यजिनेभ्यों ससारतापविनाशनाय चन्दन नि निज भावों के अक्षत ले पाचों परमेष्ठी उर लाऊँ। पद अखड अक्षय प्रगटाऊँदेव शास्त्र गुरु गुण गाऊँ ।।तीसचौबीसी. ।।३।। ॐ ह्रीं श्री नित्यमह समुच्चयजिनेभ्यो अक्षयपद प्राप्तय अक्षतं नि । निज भावो के पुष्प सजा पाँचो परमेष्ठी उर लाऊँ। काम क्रोध लोभादि मिटाऊँदेवशास्त्र गुरु गुण गाऊँ। तीसचौबीसी ॥४॥ ॐ ह्रीं श्री नित्यमह समुच्चयजिनेभ्यो कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि ।
SR No.010738
Book TitleJain Punjanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherRupchandra Sushilabai Digambar Jain Granthmala
Publication Year1992
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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