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________________ श्री गौतमस्वामी पूजन बिन समकित प्रत पूजन अर्चन जब तप सब तेरे निष्फल है । संसार बम के प्रतीक भवसागर के हैं ही दल दल है ।। ऋद्धि सिद्धि मंगल के दाता मोक्ष प्रदाता गणधादेव । मंगलमय शिव पथ पर चलकर मैं भी सिद्ध बन स्वयमेव ॥ ॐ ह्रीं श्री गौतमगणधरस्वामिन् अत्र अवतर अवतर संदोषद, * ही श्री गौतमगणधरस्वामिन् अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ . ॐ हीं श्री गौतमगणधरस्वामिन् अवमम् सनिहितो भव भव वषट्। मै मिथ्यात्व नष्ट करने को निर्मल जल की धार करूँ। सम्यक दर्शन पाऊ जन्म मरण क्षय कर भव रोग हरूँ।। गौतमगणधर स्वामी चरणो की मैं करता पूजन । देव आपके द्वारा भाषित जिनवाणी को करूँ नमन ॥१॥ ॐ ही श्री गौतमगणधरस्वामिने जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जल नि । पच पाप अविरत को त्यागू शीतल चदन चरण धरूँ। भव आताप नाश करके प्रभु मै अनादि भव रोग हरूँ। गौतम ।।२।। ॐ ही श्री गौतमगणधरस्वामिने ससारताप विनाशनाय चन्दन नि । पच प्रमाद नष्ट करने को उज्ज्वल अक्षत भेट करूँ। अक्षयपद की प्राप्त हेतु प्रभु मै अनादि भव रोग हमें । गौतम ।।३।। ॐ ही श्री गौतमगणधरस्वामिने अक्षयपद प्राप्तय अक्षत नि ।। चार कषाय अभाव हेतु मै पुष्प मनोरम भेट करूँ। कामवाण विध्वन्स करूं प्रभु मै अनादि भव रोग हरूँ गौतम ।।४।। ॐ ही श्री गौतमगणधरस्वामिने कामबाण विध्वसनाय पुष्प नि । मन वच काया योग सर्व हरने को प्रभु नैवेद्य धरूँ। क्षुधा व्याधि का नाम मिटाऊमै अनादि भव रोग हरु गौतम. ।।५।। ॐ ही श्री गौतमगणधर स्वामिने क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं नि । सम्यकज्ञान प्राप्त करने को अन्तर दीप प्रकाश करूँ। चिर अज्ञान तिमिर को नाशू मैं अनादि भव रोग हाँ गौतम ॥६॥ ॐ हीं श्री गौतमगणधरस्वामिने मोहान्धकारविनाशनाय दीप नि । मैं सम्यक चारित्र ग्रहण कर अन्तर तप की धूप वरूँ। अष्टकर्म विध्वंस करुं प्रभु मैं अनादि भव रोग हसें ॥७॥ ॐ ह्रौं श्री गौतमगणधरस्वामिने अष्टकमविध्वंसनाय धूप नि ।
SR No.010738
Book TitleJain Punjanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherRupchandra Sushilabai Digambar Jain Granthmala
Publication Year1992
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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