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________________ २४२ विचारवा योग्य छ 'आत्ममिद्धिशास्त्र' श्री देवकरणजीए आगळ पर अवगाहवु वधारे हितकारी जाणो हाल श्री लल्लुजीने मात्र अवगाहवानु लल्यु छे; तो पण जो श्री देवकरणजोनी विशेप आकाक्षा हाल रहे तो प्रत्यक्ष सत्पुरुष जेवो मारा प्रत्ये कोईए परमोपकार कर्यो नथी एवो अखड निश्चय आत्मामा लावी, अने आ देहना भविष्य जीवनमा पण ते अखंड निश्चय छोड़ तो मे आत्मार्थ ज त्याग्यो भने खरा उपकारीना उपकारने ओळववानो दोप कर्यो एम ज जाणीश, बने आत्माने सत्पुरुपनो नित्य आज्ञाकित रहेवामा ज कल्याण छे एवो, भिन्नभाव रहित, लोक संबंधी वीजा प्रकारनी सर्व कल्पना छोडोने, निश्चय वर्तावीने, श्री लल्लुजी मुनिना सहचारीपणामा ए ग्रन्थ अवगाहवामा हाल पण अडचण नथी घणी शकाओनु समाधान थवा योग्य छ सत्पुरुषनी आज्ञामा वर्तवानो जेनो दृढ निश्चय वत छे अने जे ते निश्चयने आराधे छे, तेने ज ज्ञान सम्यकपरिणामी थाय छे, ए वात आत्मार्थी जीवे अवश्य
SR No.010737
Book TitleTattvagyan Mathi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1986
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size3 MB
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