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________________ 16 २४१ दोष ते प्रत्ये अचान, शोध, मानादिना पारणयी उदास यह शक्ता नथी अथवा तेनी अमुक बळगणामा रुचि बहे छ ते परमाथने बाध परवाना कारण जाणी अवश्य सपना विपनी पठे त्यागवा योग्य छ पोईनो दोप जोवो घटतो नयी सब प्रकारे जीवना दोपनो ण विचार करदो घटे छ, एवी भावना अत्यतपणे दढ करवा याग्य छ जगतप्टिए कल्याण असभवित जाणी आ पहली बात ध्यानमा लेवा जोग छ ए विचार राखवो मुदई, चत्र वद ७, १९४९ (५२) थी सद्गुरुदेवना अनुग्रहथी अत्र समाधि छे एकातमा अवगाहवाने गर्थे 'आत्मसिद्धि' आ जोहे मोक्ल्यु छे ते हाल श्री लल्लुजीए अवगाहवा योग्य छ जिनागम विचारवानी श्री लल्लुजी अथवा श्री देव फरणजीने इच्छा होय तो 'आचाराग , 'सूयगडाग', ___ 'दशवकारिक', 'उत्तराध्ययन' अने 'प्रश्नध्याकरण'
SR No.010737
Book TitleTattvagyan Mathi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1986
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size3 MB
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