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________________ १९२ आत्मा सदा असंग ने, करे प्रकृति बंध; । अथवा ईश्वर प्रेरणा, तेथी जीव अबध. ७२ माटे मोक्ष उपायनो, कोई न हेतु जणाय, कर्मतणु कपिणुं, का नहि, का नहि जाय. ७३ __ (३) समाधान-सद्गुरु उवाच होय न चेतन प्रेरणा, कोण आहे तो कर्म ? जडस्वभाव नहि प्रेरणा, जुओ विचारी धर्म. ७४ जो चेतन करतु नथी, नथी थता तो कर्म, तेथी सहज स्वभाव नहि, तेम ज नहि जीवधर्म. ७५ केवळ होत असग जो, भासत तने न केम ? असग छे परमार्थथी, पण निज भाने तेम. ७६ कर्ता ईश्वर कोई नहि, ईश्वर शुद्ध स्वभाव; अथवा प्रेरक ते गण्ये, ईश्वर दोषप्रभाव. ७७ चेतन जो निज भानमा, कर्ता आप स्वभाव वर्ते नहि निज भानमा, कर्ता कर्म-प्रभाव. ७८
SR No.010737
Book TitleTattvagyan Mathi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1986
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size3 MB
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