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________________ ने सयोगो देखिये, ते ते अनुभव दश्य, ऊपजे नहि सयोगयी, आत्मा नित्य प्रत्यक्ष ६४ जडयो चेतन ऊपजे, चेतनथी जह पाय, एवो अनुभव कोईने, क्यारे क्दी न थाय ६५ कोई सयोगोथी नही, जेनी उत्पत्ति थाय, नाश न तेनो काईमा, तथी नित्य सदाय ६६ क्रोधादि तरतम्यता, सदिक्नी माय, पूवज म सस्कार ते, जीवनित्यता त्याय ६७ आत्मा द्रव्ये नित्य छ, पर्याये पल्टाय, बाळादि घय त्रण्यनु, भान एकने थाय ६८ अपवा नान क्षणिकनु जे जाणी बदनार, वदनारो त क्षणिक नहि, कर अनुभव निर्धार ६९ क्यारे काई वस्तुनो, केवळ होय न नाश, घेतन पामे नाश तो, पेमा भळे तपास ७० (३) शका-शिष्य उवाच कर्ता जीव न मना, कम ज क्र्ता कर्म, अपवा सहज स्वभाव का, यम जीपनो घम ७१
SR No.010737
Book TitleTattvagyan Mathi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1986
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size3 MB
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