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________________ काळदोष कळियी थयो, नहि मर्यादा घम, सोय नही व्याकुळता, जुओ प्रभु मुज बम ९ सेवाने प्रतिकूळ जे, ते बघन नथी त्याग, देहद्रिय माने नहीं, करे वाह्य पर राग १० तुज वियोग स्फुरतो नथी, वचन नयन यम नाही, महि उदास अनभक्तथी, तेम गृहादिय माही ११ महमावधी रहित नहि, स्वधर्म सचय नाही, नथी निवृत्ति निमळपणे अय धमनी काई १२ एम अनत प्रकारथी, साधन रहित हुय, नही एक सद्गुण पण, मुख वतावु शुय? १३ फेवळ करुणामूर्ति छो, दीनबघु दीननाथ, पापी परम मनाय छु ग्रहो प्रभुजी हाय १४ अनत पाळयी आथडयो, विना भान भगवान, सेन्या महि गुरु सतने मूक्य नहि अभिमान १५ सत चरण आयय विना, साधन कयाँ अनक, पार न तेषा पामियो ऊग्यो न अश विवेक १६ राह साधन बधन पया, रहो न कोई उपाय, अनुसापा समग्यो नही, त्या वपन शु जाय ? १५
SR No.010737
Book TitleTattvagyan Mathi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1986
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size3 MB
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