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________________ (७५) इन तीन पदार्थक मिलानेसे चोइस तत्त्व धनते हैं, और पच्चीसमा पुरुप ( आत्मा ) ये पच्चीस तत्व हमारे सारय मतमें माने हुए हैं। जिनमें से आत्माको हम नीचे मूजन स्वरूप वाला मानते है। अमूर्तश्चेतनो भोगी नित्य सर्वगतोऽक्रिय ॥ अफर्ता निर्गुण सूक्ष्म आत्मा कापिल दर्शने ॥१॥ मतला-हमारे यहा कापिल दर्शनमें आत्माको अमूर्त, चेतन, भोगी, नित्य-सर्व व्यापक-अकर्ता-निर्गुण और सूक्ष्म माना है । देखिये, कैसे तव सुनाये । ___जैन-चाहनी ! वाह ! खूप तत्र सुनाये । क्या ये तत्व है ? या जतच ? आप जरा हमारे नर तत्त्व पढते तो जांखें सुलजाती और मालुम होजाता कि ठीक तत्व येही है। मिय सारयमतावलम्बी भाइयो ! प्रथम आपको सोचना चाहियेथा कि जड उद्धि पदार्थ ज्ञान कैसे कर सकेगी ! प्रत्यक्षत या घुद्धि एक किस्मकी चैतन्य स्वरूप है, उस्को जड कहना कितनी भूल है ? अगर योजड है तो आप उसमें पदापोंके आक्रमणसे पदार्थ परिच्छेदक कर्मी ( पदार्थोंकोजाननेवाली ) उस्को कैसे कहते है। सारय-हम चिन् (चेतना) के सानिध्यसे बुद्धिको पदार्प
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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