SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बन सक्ती । क्योंकि वाकीके लोगोमभी कर्तृत्व मानोगे तबही भोक्तृत्व लिया जायगा । यतः वाकीके लोगोंनेभी उद्यमद्वारा धन मिलाया या तनही अनाज खा सके, उनके पास पैसे नहोते तो अनाज कैसे खाते ' इसलिये इनमें धनोत्पन्न कर्तृत्व पातो भोक्तत्व पाया गया। पतलाइये, आत्मामें आप फिसनातफा कर्तृत्व मानते हो? जब किसी एक वातकाभी इस्को का मानोगे तर किसान पाली मिसालसे आप अपना इष्ट साध सक्ते है । अन्यथा नहीं और एफ यहभी बात हैकि अगर आप आस्माको को नहीं मानोगे तो आपका आत्मा कुछ चीनही नहीं रहेगा। साख्य-वतलाइये, किस तरहसे ? लीजिये, यहां क्या देर है। भात् करिपत पुरुषो वस्तु न भवति, अकत्तृत्वात्, खपुष्पवत् । मतलर-नापका कल्पा हुआ पुरुष कुच्छ चीज नहीं है। जकर्ता होनेसे जैसे आकाशका फूल दर असलही कोई चीमनहीं है। तोवो क भी नहीं माना जाता। हो जो दुनियामें है कुछन । गोतो पुछ जरुरहि करेगा अवहम आपसे यह बात पूछते हैं कि ___आपका माना हुआ आत्मा भुजी क्रिया (भौग) करता है ? या
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy