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________________ ( ६३ ) इनके झूठे मतव्योमें गोते खाते रहते मगर समझोकि हमारे वहे __ भारी पुण्यका उदयथा जो हम इनके मतव्योंसे बच गये हैं, और वीतराग वचनामृतका पान कर रहे हैं । खयाल कीजिये हमारे सिरताज जिनेश्वर देवने मोक्षका तरीका कैसा उ मदा बयान किया है वे वयान करते हैं कि-" सम्यग् ज्ञान दर्शन चारिनागि मोक्षमार्ग " इसका मतलब यह है कि सम्यम् ज्ञान ( सच्चा ज्ञान) सम्यग् दर्शन (मुश्रद्धा) याने एतकाद और सम्यग् चारिन (नेक और दुरुस्त चालचलन) यही मोक्षका मार्ग है। अर्थात् सत् ज्ञानकी गाप्ति और एतकाद कारखना और नेक मचि रसनी इन तीनों वातोंके मिलनेपर मोक्ष हॉसिल होता है। देखिये, कैसी निष्पक्षपातता जाहेर फिइ है । नफिसी मतका नाम पाया जाता है, और नकिसी लिंगका । तीन बात जरूर होनी चाहिये । इन तीन बातोंकर युक्त शख्स चाहे कही क्यों नहो अपश्यमेव तरेगा । मगर वो जैन जरूर कह लायगा । क्योंकि जननाम उस्का है जो रागद्वेष रहित व्यक्तिम सेवक हो, सो पूर्वोक्त तीन चीजोंको जो पारेगा गोभी रागद्वेपरहित व्यक्तिकोही देव मानने लग जायगा। प्रिय मिनो । इन तीन चीजों में भी सम्यक् दर्शन यानि एतमादका मुम्य दर्गा रगा है। क्योंकि गैर एतमदके चाहे इतनी क्रिया क्यों न र, य चाहे उतने भापण क्यों न देवें, अथवा चाहे उतने प्रतादिक कष्ट सहकर अ'यात्मी क्यों न कहलायें,
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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