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________________ (६२) किसीने उपचारसे वाक्यका प्रयोग किया है। वहांपर उस्के उपचारकी अपेक्षा को छोडकर मुख्य वृतिसे उस्का खहन कर देना । इस्को उपचार छल कहते हैं । मसलन किसी शख्सने कहा कि "मञ्चाः क्रोशन्ति " अर्थात् मंजे वोल रहे हैं। यह लाक्षणिक प्रयोग है । इस लिये यहांपर प्रयोग ऐसेही किया जाता है । मगर लक्षणसे अर्थ यह लिया जाता है कि मंचे पर बैठे हुए पुरुप शब्द कर रहे हैं । यहांपर कथन करने वाले का खंडन करनेके लिये यह कह देना कि मंजे जड हैं, वे कैसे वोल सकते हैं। बस, ऐसे लाक्षणिक पदोंके अर्थको समझते हुएभी अपने कुतर्क द्वारा असली मतबलको गुम्म करना इस्को उपचार छल कहते हैं। प्रिय पाठकगणो ! अव आपको बखूबी मालुम होगया होगा कि ऐसे ऐसे तत्वाभासोंको (जुझसरमें समझ लेवेकि झूठे तत्त्वको तत्त्वाभास कहते हैं ) तत्त्व समझने वाले यदि क्रियाका स्वीकार करले तोभी इनका कल्याण होना मुश्किल है। क्योंकि जब तक सत्य ज्ञानकी प्राप्ति नहो वहांतक क्रिया विचारी क्या करसकती है ? प्रिय जैनो! आपको इनकी उल्ट पुल्ट बातोंके श्रवण करनेसे जिनेश्वर देवके कथन किये हुए वचनोंपर खूबदृढ निश्चय होगया होगा। देखिये, उस परम कृपालुने हमें सदागमकी विद्या अगर न दी होती तो हममी
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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