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________________ (१९) नहीं करसक्ता । रतलाइये, भोगेगा कहाँ ? मेरे मित्रो । देखिये ! प्रथम दूषण इसी नरहसे कायम रहा । क्या ? श्रीमद् हेमचद्राचार्यनी जैसे महर्पियोंका वचनभी अ यया होसकता है ? हरगिज नहीं । हरगिज नहीं। दूसरा यह दूषण है कि दिना कियेही कर्मका भोग मिल जाता है । जैसे दूसरे क्षणमें पैदा होने वालेने कोड कर्म नहीं कियाया । मगर भोक्ता बनता है । क्योंकि उन कुटनो शुभाशुभका अनुभव जरूर करेगा। यतः ऐमी कोई क्षण नहीं है, जिम्में भोक्तृत्व न हो। इससे साबित हुआ कि दूसरे क्षणम पैदा होनेवालेको कर्मके बगैरदी किये-कर्मका भोग मिला । इसठिये अकृत कर्म नामका दूसरा दूपणभी लिष्ट फर्मसी तरह अति बलिप्ट इनके पीछे लगा है, मरनी चाहे वहाँ भागें छूट नहीं सकते। तीसरा भवभग नामका दूपण है। जैसे कि बौदाश मानना है कि क्षण सण पदार्थ नष्ट हो जाता है। यहापर कहोका तात्पर्य यह है कि जर पूर्व क्षण कर्म फर्ता नष्ट हो गया तो भोगेगा कौन ? और एक जन्ममे दुसरे जन्ममें पैदा होना पर्मिके उदयसे होता । मो कर्म कर्त्ता तो क्षणसे याद ठहरही नही सक्ता । पताइये? अब परलोकमें कौन नायगा 'इम लिये भरभग नामका तीमरा दाणभी इनसे परम परिचय रखता है । अत्र चौथा दपण मोसमग नापका है, यह भी पफ अनिवार्य है। मनलप इसके मामें मोतो व्य.
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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