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________________ ( ३३ ) है । वाह ! अच्छा मडन किया। आस्तिक-आप हमारे मतव्यका रेशभी नहीं समा सक्त है। अगर समझाते नो नास्तिकही क्यों बने रहने । याद रहे ! हमारे दिये हुए हतु च मिसाले कभी साभ्य विरुद्ध सिद्ध नहीं होसक्ती । क्योंकि जीवके साथ आउ र्यके लोलीभत होनेसे कथचित् हम इस्को मूत्तिमानभी मानते है, और पर्यायार्षिक नयके मतसे हम इसे अनित्यभी स्वीकारते हैं । इसलिये पूर्वोक्त दूपण आपकी ये समझीको सिद्धि करता है । याद रसना: जैन मतके मतव्यको वोही अच्छी तरह समय सत्ता है, जो स्याद्वाद स्प गजद्रकी सवारी करना जानता है। ___ चतुर्य अनुमान यह है कि स्प और रस नगेर गुणोंकी तरह इनका ज्ञाभी किसी जगहपर आश्रित है । (जिस्मे आश्रित हरो आश्रयतदाता आत्माही सिद्ध है।) इस्का मतरम यह है कि जैसे पट रूप घटाश्रित है, और शकरका सादिष्ट रस शहरके आश्रित है। इससे यह मतलप निकलाकि जिस तरहसे रप व रस इद्रिय ज्ञानके विषय अपने अपने योग्य गुणामें आश्रित है । इसी तरहसे इनका अनुभव का ज्ञानमी विपयवत् मिसोजगहपर आश्रित होना चाहिये। इम्के मुताविक आश्रयदाता सिपाय आत्माके ओर घट नहीं सक्ता, अगर घटता है तो बता दीजिये ' देखिये ! एक और बात सुनाता है।
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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