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________________ (२९) जावे तो क्या हरकत है ? आस्तिर-किस तरहसे मानलिया जावे कोड सबूत दो अगर सची वात हुइ तो हमभी मान लेंगे । क्या फिकर है । नास्तिक देखिये दलील यह है तथाहि । ज्ञानोदयो देह गुणा एव, तत्रैवोपलभ्य मानत्वात् । गौरकृश स्थूलत्वादि वत् । भावार्थ-नानादि गुण शरीरमेहि पैदा होते है । ऐसा माग पडनेसे शरीरके हि गुण है । गौरापन अपघा मोटापन च पतलापन आदि धर्म गरीरमे मालुम होते हैं । इसलिये अफल मद उन्हें शरीरकेही गुण मानते हैं । इसी तरहसे यहापर भी आप समझ लेों। नास्तिक-आपका यह अनुमान मिलकुल झूठा है। क्या कि जापके अनुमानान्तर्गत हेतु नहीं है, किन्तु प्रत्यनुमान घावित होनेमे हे वाभास है । तथादि देहस्य गुणा ज्ञानादयो न भवन्ति, तस्य मुत्तेलाचाक्षुप वादा घटवत । अर्थ-शानादिक गरीरके गुण नहीं हो सक्त है। क्यों कि
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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