SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . . फलानेको याद कर रहाई। इसीतरह जिज्ञासादि अनुभवभी साक्षात् होता है तो इन गुणों का आधार आत्मा अप्रत्यक्ष कैसे होसक्ता है। जैसे आकाशका गुण शब्द मगर आकाश प्रत्यक्ष नहीं है। ___नास्तिक-हम इस वातको मानते हैं कि स्मरण ज्ञान दगेरा आत्माके गुण प्रत्यक्ष है मगर आत्मा प्रत्यक्ष नहीं होसता है। क्यों कि यह कोई नियम नहीं है कि जिस्का गुण प्रत्यक्षहो उस्का गुणीभी प्रत्यक्ष होसके ! ___ आस्तिक-कौन कहता है ? नियम नहीं है यह बराबर नियमहै कि जिसका गुण प्रत्यक्ष है उसका शुगी अवश्यमेव प्रत्यक्ष रहेगा। आपने आकाशमें व्यभिचार दिखलाया सो आपकी समझका फर्क है । कौन कहता है आकाशका गुण शब्द है ? शब्द पुद्गलका गुण है इंद्रियका विषय होनेसे रुपकी तरह अगर इस वातका अच्छी तरहसे निरूपण करना चाहे तो इस निबंधके वरावरका निबंध तैयार हो सक्ताहै । इस लिये यहांपर इस वातको लंबायमान करना ठीक नहीं मालूम होता । जिस्को देखनेकी (इच्छा) हो स्याद्वादमंजरी-पट्दर्शन समुच्चय -रत्नाकरावतारिका-सम्मतितर्क-आदि ग्रंथों को देख लेवें । नास्तिक-अच्छाजी गुण के प्रत्यक्ष होनेसे गुंगीका प्रत्यक्ष होना तो मान लिया गया; मगर शरीरमेंही ज्ञानादि गुण पैदा होते हैं इसलिये शरीरको ही उनका गुणी मानलिया
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy