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________________ (२५) चेप्टाय वढी होनी चाहिये । मगर होती नहीं । बस इससे आपकी तमाम आनताको लोग वखपी समझ सकते है तो में क्या समझाउगा। पाद भूतमानको चैतन्यका कारण माननाभी एक हमाकत ( पेवकूफी) है। क्यों कि कारणमें कुछ फर्क न होनेकी वजहसे जहा भूत होगा वहा चैतन्य मानना पडेगा । क्या कि चेतन्य जन्य हे और भूत जनक है । इस लिये हमेशह घटादिकमें भी पुरुपकी तरह व्यक्त चैतन्य की पैदायश होनी चाहिये, और ऐसा होनेपर घट और पुरुपमे कोइ विशेषता नहीं रहेगी। नास्तिक-माणापान सहित शरीराकार भूतीको हम चेतन्यका जनक मानते है, इसलिये पूर्वोक्त दोप नहीं आता है। __ आस्तिक-नापका यह कथनभी भस्म में घी डालनेकी तरह निष्फल है । यतः आपके मतमे भूतोका शरीराकार परिणामही नहीं हो सक्ता है । देखिये । सोही बतलाते है । उस कायाकार परिणामका कारण कहिये । पृथ्वी आदिक भूतोंको मानते हैं ? या कोई अलगहिदा निमित्त मानते है ? अथवा तो अहेतुक मानते है प्रथम पक्षको तो ग्रहणही नहीं करसक्त हो । क्योंकि पृधिव्यादिक भूत हरएक जगहपर मालुम होते हैं। इससे सर्वत्र कायाकार परिणाम उपलब्ध होना चाहिये । अगर कहोगे पृथ्वी आदि भूतासे अलाहिदा कोई कारण है, जिससे शरीरा
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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