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________________ ( २२) वात् । मांगेभ्यो मद शक्तिवत् " भावार्थः-कायाकार परिणत भृतासे चैतन्य पैदा होता है तद्भावसेंही चैतन्यका सद्भाव होनेसे __ मयके अंगमें मदशत्तिकी तरह इस अनुमानसे भूतका कार्य __ चैतन्यको सिद्ध करते हो मगर यह अनुमान ठीक नहीं है। क्योंकि "सद्भाव एव चैतन्य भावात्" याने मृताका अस्तित्व होनेपरही चैतन्य होनेसे यह हेतु (सबब) अनेकान्तिक है। यतः मृत अवस्थामें शरीराकार भूतोंके होने परभी चैनन्यका अभाव होनेसे हेतु सिद्ध है। नास्तिक-पृथ्वी, पानी, आग, हवा, इन चार भृतोंके इकठे होनेपर चैतन्य पैदा होता है; सो मृत शरीरमें आग हवाके न होनेसे चैतन्य मालूम नहीं होता। ___आस्तिक-यहभी एक आपका गलत खयाल है । क्योंकि मृत शरीरमें पोलाड होनेसे वायुकी संभावना जरूर होती है, अगर वहां वायुकी विकलतासे चैतन्य नहीं मालूम होता है तो वस्त्यादिकके जरीये वायुका संचार करनेपर चैतन्य मालूम होना चाहिये मगर होता नहीं। इससे सिद्ध है कि भूतोंसे चैतन्य नहीं हो सक्ता है। नास्तिक-और किस्मके वायुके संचारसे कुछ नहीं हो सक्ता। प्राणापान (श्वासोश्वास ) रूप वायुकी जरुरत है । सो ऐसे वायुके अभावसे चैतन्योपलब्धि नहीं होसक्ती ।
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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