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________________ ( ३२४ ) __उमरमेंही आपके माता पिता इन्नकाल कर गयेथे । आपके १ भाई और दो वहिनेभी थीं. मातापिताका देहांत हो जानेपर . चरित्र नायक अपनी वहीनके घर पटना मुकामपर रहे. और वहींपर उनको विजयदानमूरिजीने “ससार असार है" यह तत्व बतलाया और आपने संसारको त्यागनेका इरादा किया. हमशीराने बहुत कुछ विरोध किया लेकिन आप अपने दृढ निश्चयसे न टले. तब सभी संबंधियोंनेभी उन्हें गति हो जाने की आज्ञा देदी. इस मुताविक आपने १३ सालकी छोटी क्यमे ही विजयदान सूरिजीके पाससे यति दीक्षा लेली और उक्त सूरिजीनी मातेहतीमें तमाम गास्त्रोंका अव्ययन किया. उनकी बुद्धिमत्ता देखकर विजयदान सरिजीने उन्हें धर्मसागरजी उपाध्यायके साथ दक्षिणमे देवगिरी स्थानपर तर्कशाल्ल पडनेके लिये विद्वान ब्राह्मणों की तरफ भेजे. देवसी नामक एक व्यापारीने उनके सब खर्चका प्रबंध किया. और आप जल्द ही उक्त शास्त्रका अध्ययन करके पारंगत हुए । ईश्वीसन् १५६१ में आपको वाचक पदवी मिली. और दो वर्ष बाद आप सिरोहीमें सूरिके खिताबको प्राप्त हुए. इस मुताबिक आप जैन साधुओंमें अग्रणी-ब-नेता तथा सूरि एवं आचार्य हुए । आपके उपदेशसे कई अन्यान्य धर्मियों ने अपना हठ छोड आपका शिष्यत्व स्वीकार किया गुजराती लुपगच्छके अनु
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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