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________________ (30) ॥ अहम् ।। श्रीमान हीरविजय सूरी. तथा ॥ अकबरसाहके दमारमे जैन । यह सत्यहै कि, अकरम्गारफी नपिरतने मनपसी - जपर गाट अनाज पियार पहचायाथा ताहम ये दिल परत मातशि, स अर्ण व्यक्तिने किमतारपर इम जसरहरत पानी पिया। न केरल अपनी रियाया जो के गुलानिए मि पर वो धर्म र पनीयी, नगरसपा । रति मोइस नोरमे पसी मर मिराफिको उन्हें हरपक मरहमत अनुयायी नगर आताया ! नगागन निम्नियों जानत्ये दियो निम्ति या पाग्गी समातेथे कि नो पारसी था और उसे अपना गायनमा पिपात परतेरे । दरा मुतावित धर्मसी पॉरिमीपर बिहान तारिफपी frदेगा पाहिये।
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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