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________________ (३१५) जो प्रकट करनेसे बहार है हे दयानिधे कृपाकर कलभी इसी मकार उपदेश फरमायेंगे नो महत् कृपा होगी. ___एसी अर्ज करनेके पश्चात गुरुगीजी श्री पुण्यश्रीजी सर्व साधु मडलीको वदना करके अपने उपाश्रायपर पहुचे तथा साधु रोगभी अपनी क्रीयामें तत्पर हुवे ____ गौचरी व प्रतिक्रमादिक करनेके बाद साधुजन श्रावकों को तथा साधरिये श्रापिराओको सीवाने पडानेका उपम करने लगी तथा अपनी स्वा पाय करके गयन करनेके समय सथारा पारासि पी रानि चीन जानेपर प्रात कालमें अपनी क्रीयासे निवृत्त होकर श्री पुप्यत्रीजी अपनी सर्व शिष्याओं को लेकर मीश्वरके पास पहुचे जोर वग्ना करनके पश्चात मावि य रोने है त्यासि प्रा पार आप किंचिामान निक्षेपों का नगन फरमान___ इनके मुन्दसे एस गब्द सुनते नी सर्व शिष्यवर्ग अत्यन्त उत्तगस गुरुवयं के पास आन ८ठ और निक्षेपणन मुननको चित्त स्थिर किया यज्ञदत्तजीभी उसी पारत आ पहुचे और निक्षेपोंका वर्णन सुनाने के शरीर गुन्र्य से टुत आग्रह करन लगे
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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