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________________ ( ३१४ ) नो कालान्तरमेंभी मोल न जा सके. जाति भव्य वह हैं जो भव्य है मगर किसी कालमें मोक्षको न गया न जावेगा. ईस तरे जो बातोकी भीन्न २ करके बतावे तो व्यवहार __नय है. मूत्रनय-इसके दो भेदे हैं. १ सूक्ष्म ऋजुत्र जैसे पर्याग एक समया वस्थायी है. __ २ स्थूलजस्त्र जैसे मनुष्यादि पर्याय, वह उसके आयु प्रमाण रहती है. सब्द सम मिरुढ और एवं शून इनके एक २ भेद होते है. शब्दनग एकार्थ वाची शब्द काना, जैसे, दारा, भार्या, कलत्र इत्यादि समभिरुढ नयः-जैसे, गौषशु. एवंमतन्या-जैसे, "इदंती.त:२ः '-ईन्द्रकी विभूति करके सहिन होवे सो इन्द्र हे. इस नयोके औरभी बहुतसे भेद होते हैं. सो प्रसंगोपात किसी और समय क हे जायेंगे अच्छा अश्याडिले हणादि क्रियाका समय आया अब आज यह विषय यही बंध करके कल इसको आगे चलावेगे. ___ श्रीपुण्यश्रीजी-हे गुरुवर्य आज यह दासी बहुन कृतार्थ हुई है श्री मुखकी वानी सुनकर इतनी आनंदित हुई है कि
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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