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________________ श्लोक द्रव्यानामर्जने दुःखं अर्जितानां च रक्षिते । आये दुःखं व्यये दुःख धिर्थो दुःख भाजनम् ॥५॥ अर्थ-प्रथम तो द्रव्यको पैदा करनेमैं केवल दुःख ही दुःख है, वादमें रक्षा करनमें बड़ा भय बना रहता है सोभी दुःख, आते दुःख, खर्चते दुःख; वास्ते ऐसे दुःखके भाजन रूप द्रव्यको धिक्कार होवो. निश्चय-निम्न लिलित व चार प्रकारका परिग्रह नहीं रखे अथवा हमेशा न्नयू करता रहै. ? मिथ्यात्व, २ क्रोध, ३ मान, ४ माया, ५ लोभ, ६ हाल्य, ७ रति, ८ अरति, ९ शोक, १० भय, ११ जुगुप्ता, १२ पुरुषवेद, १३ स्त्री वेद, १४ और नपुंसकवेद. हे भाई ! इन पंच महा व्रतोंके अतिरिक्त छठा व्रत रात्री मोजनका होता है. वह यह है कि कभी रात्रीमें खान पान करे नही, कराये नही तथा करतेको अनुमोदे नहीं. मन वचन __ और काया करके. हे भव्य प्राणियो ! वे मुनिराज तीर्थकर देवके कथनातुसार सत्य मरूपणाके करने वाले होते हैं. वे मुनिवर्य अष्ट प्रवचन माताके पालक होते है. हे भाई ! में उन आठौं माताका
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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