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________________ ( ३०५ ) यन्न-डे मूरिराज । वे पच महाव्रत कौनसे हैं सो कृपा कर फरमात्र मूरि-हे ज्ञदत्त पाचो पहानतीका बयान मै व्यवहार निश्चय पर रहता हु सो मुन - प्रथम अहिसा त-व्यवहार फिसी स या स्थावर जीवकी हिंसा करे नही, करावे नहीं तथा परतेकों अनुमोदे नही मन वचन और काया करके निचय, राग द्वेष करके अपनी आत्माको नही हणे दुसरा सत्यरत व्यवहार-युठ बोले नही, गोलावे नही तथा बोल्तेरो अनुमोदे नहीं मन वचन और काया करके निश्य पौद्गलीक वस्तु जो पर गिनी जाती है उसको अपनी न कहने तीसरा अस्तेप गत व्यवहार-चारी करे नहीं, करा नहीं, फरतेको अनुमोदे नहीं मन वचन और काया करके नियय अकर्मकी वर्गणाको ग्रहण करने का उपाय न करे। चौधा ब्राह्मचर्यरत व्यवहार-स्वपर स्त्री भोगे नहीं भोगारे नहीं, तथा भोगतेको अनुमोदे नहीं. मन वचन और फाया करके निधय पुद्गलमें रमणता न करे ___ पाचया अपरिग्रहनत व्यवहार-समूळ परिग्रह सखे नहीं, रखावे नही, रखतेकों अनुमोद नही. मन वचन और किया करके चल्के एसा समझे कि
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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