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________________ ( १८) नास्तिक-प्रथम मैंने कहाया कि "अहं स्थला" "अहं कृशः" यह प्रत्यय शरीरमं होताहै नकि आत्माम । इस्का क्या जवाब है ? ____ आस्तिक-देखिये ! मैं स्थुल हूं, मैं कृश हूं इसवातकी अतीतिभी आत्मासेही होगी। हां वेशक आत्मा स्थूल व कृश नहीं होता मगर पतले व मोटे शरीरको जानने वाला होताहै । अगर वगेर आत्माकेही यह विचार पैदा होतातो फिर मुडदा भी इसी तरह विचारता कि मैं स्थूल हूं या कृश हूं, जिंदा हुँ या मरा हूं? मगर मुडदेमें यह खयाल कभी नहीं आता। इसलिये सर्व कार्य गमना गमनादिक चेटाका कर्ता आत्माकोही मानना पडेगा। ___नास्तिक-ठीकहै, आपकी दलीलको मैं मानता हूं मगर माप हमारी पीछेकी दलीलोंको भूलाये हो ऐसे मालुम देता है। क्योंकि हमने पेश्तर सावित कर दिखलायाहै कि अन्वय व्यतिरेकसे शरीर चैतन्यका कारण है फिर झगडा किस वानका करते हो? आस्तिक-महापंडितजी ! जरा विचार देखते तो आपको साफ मालुम पड़ता कि अन्य व्यतिरेकसे शरीर ज्ञानका कारण कभी नहीं हो सकताहै । इसलिये कि शरीर के साथ चेतनाका अन्य व्यतिरेकवाला ताल्लुक नहीं है । देखिये ! इसी
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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