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________________ ( १७ ) होती है । इस लिये शरीरसे अलाहिदा इसके आलानभूत पोइ ज्ञानपान पदार्थ स्वीकारना चाहिये | जो जाता न सके सो बस ऐसा आत्माही होसका है और यहभी याद रह। जिस चीनका गुण मत्यभ होता है वो चीज तो स्वत प्रत्यक्ष होजायगी । मसन घटका रप प्रत्यक्ष होताहै तो घटका मत्यक्ष तो आपही माना जाता है । इसी तरहसे आत्माका गुण ज्ञान जन प्रत्यक्ष तो आत्मा तो आपही प्रत्यक्ष मानना पडेगा । उस इससे सारिन हुआ कि आत्मा प्रत्यक्ष है । नास्तिक - म पूर्व शरीरको चेतना के योगसे सचेतन सिद्ध कर चूत है, इसलिये सकाम शरीरसेही में मानता हू । आस्तिक - देवना मिय' तेरा यह कहना ठीक नहीं है । क्योंकि चेतना योग होनेपरभी स्वय चेतन होगा उसेलिये ही अद प्रत्यय मानना योग्य है नकि अचेतन के लिये । मसलन घडेपर हजारों चिरायोंकी रोगनी गिरने परभी स्त्रय अमकाकभी माफ नहीवन सक्ता । लेकिन दीपपद्दी माशक कहायगा । इसीतरह चेतनाका योग होनेपरमी गुढ अचेतन शरीर ज्ञाता सिद्ध नहीं होमक्ता । किन्तु आत्माही ज्ञाता (जानेवा) कायगा । इसलिये अह मन्ययसेदी आत्या सिद्धि दी। इये, अनमी अमान रही।
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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