SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 319
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २९९) यन-मगर त्रिराज ! नैनी-लोग तो बडे ही अभिमान और पक्षपातके साथ कहते हैं कि हमारे तीर्थंकरोंके सिवाय अन्य ईश्वर हैही नही मूरि -हे भाई । इसमें पक्षपातकी क्या बात है, उनके चरिनोसें तया आकृतियोसे (प्रतिमाओंसे) ज्ञात हो जाता है देखो, श्री हरीभद्रमूरि महाराजने लोकतत्वनिर्णयमें कहा है - शोक बंधुनन सभगवान रिपनोपिनान्ये । सानान्नदृष्टचर एकतरोपिचेपाम् ।। श्रुत्वापच सुचरित च पृथर विशेष । वीरगुणातिशयलोलनयाश्रिता स्म ॥३॥ अर्थ- न अरिडत भगवान मेरे रधु है और न अन्य देर मेरे रिपु है, समय कि दोनोमस परफोभी आखोसे देखे नही, मगर वचन तथा मुचरित्र सुनकर गुणोके अन्दर लोटप्य होरर हमने वीर भगराना ही शरण लिया है औरभी ओर पक्षपातो नमेवीरे, नद्देप कपिलादिषु ।। युक्तिमदचनयस्य तस्यकार्य परिग्रह ||
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy