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________________ (२९७ ) १४ प्रभु जहा विचरते है वहा एक २ जोजनता कांटे सीधेके ओंचे होजाते हैं १५ प्रभु जहा • विचरते हैं वहा २ एक जोजन तक ऋतु अनुकूल हो जाती है १६ प्रभु जहा - विचरते हैं वहा एक २ जोजन तक गीतल मद मुगरि वायुसे भूमि मुगधित हो जाती है. १७ प्रभु जहा २ पिचरते है वहा एक • जोगन तक जरसे भूमि शुद्ध हो जाती है १८ घुटने प्रमाण देवलोग पुष्पवृष्टि करते हे १९ अशुभ वर्ण गा रस और ा नष्ट हो जाते हैं २० शुभ वर्ण गघ रस और स्पर्श प्राप्त हो जाते हैं २१ एक योजन पर्यन्त वाणी सुनाई देती है २० नित्य पर्ष मागीमे देश निकरती है ०३ अपनी • भापामे बाराहों पर्पदा समझ जाती २८ सर्परा जाति परतफ छूट जाता है २७ परवादि शीत नमाते है २६ पाही जीत नही सक्ता, २७ इनो रोग ( टोडादिकमा गिरना नही होता ) २८ मरो गेग (प्लेग हैनादि ) नदी होना २९ सयरका भय नहीं होता
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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