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________________ — ( २९३ ) भीतर पाया और हहहहहहहहह इस प्रकार बहुत जोरसे हसना शुरकिया उसका हारय सुनकर सर्व लोग चक्ति होगये और थोडी टेरके बाद उसे पूड़ने लगे ज्यो भाई । तुझे इतनी हसी क्यो आई ? पि-अजी साहब ! वाह वा इहहहहहह मेरा तो पेट अभी तक ले जा रहा है, मला रेखो तो जैनी लोग केवल देव गुर धर्म देव गुरु धर्म पुकारा करते है, न माल्म उन्हे प्या मूझ पडा हे कि और वात सूझती ही नही न मारम उसके अन्दर ऐसा क्या पदार्थ रसा हुवा है । १ जन मने आप सो को उसी विषयमें मग्न देग्वे तब मुझे पडी भारी इसी आई अन्डा लो भर जाते हैं इतनेहीम एक श्रावक बोला, भाई । टहरो, जरा बैठकर मागे रि देव गुर और धर्म रिसे रहते है और जय तुमारी ये समझमें आ जायेंगे तब तुम ऐसे प्रस्नभी नही फरा करोगे उस पारको ऐसे शब्द मुनकर वह विधर्मी वेट गया जर कि उसका चित्त शान्त हुया तर नूरी पर पोरे - दे भाई । नुम कौन जात हो, पहासे आये हो और तुमारा क्या म ?
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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