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________________ ( २९२ ). आन पहुंचे सूरी महाराजको आनंदमें मग्न देखकर श्रीपुण्य श्रीजी बोले- . हे गुरुवर्य ! आज आपने कौनसे ग्रंथकी रचना शुरुकी है और उसमें आप मुख्य क्या २ विषय लावेंगे ? सूरि-हे महानुभावा! सन्यक्त दर्शक नाना ग्रंथ लिख रहा हुं और विशेष करके इसमें देव गुरु और धर्मका वर्णन करूंगा. पुण्य-हे महाराज ! यदि आप इस ग्रंथ लिखने प्रथम इस विषयकों हमारे सामने चर्चग तो अत्यन्त लामका कारण होगा, यद्यपि इन राज्योंका वर्णन येरे पढदेमें और सुननेमें वहुतसी वख्त आया है; तदपि आपके मुखले इस वख्त औरभी सुनना चहातीहुं. ऐसे वचन श्री पुण्यश्रीजीके सुनकर उक्त सूरिमहाराजके अन्य शिष्य जो कि किसी पंडितके पास पह रहेथे एकदमसे उठखड़े हुवे और अत्यन्त हर्ष व विनयके साथ स्यूरिश्वरसे बोले हे दीनदयाल ! जो प्रश्न श्रीपुण्यश्रीजीने किया वह अत्यन्त अनुमोदनीय है, कृपाकरके उन तीन तत्वोंके विषयमें हमें भी समझाइयेगा. इन सर्व साहबोमें इस प्रकार बातें होतीहुई सुनकर एक विधर्मी जो कि वहारसे सुन रहाथा एकदम
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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