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________________ ( २८१ ) भक्ति । जो ऊपरसे तो भक्तका डौल रखते हैं पर मनमें कुछभी न हो वे नामपारी भक्त कहाते हैं । ये लोग अपना ऊपरी ढौरमी उदरपोपणके अर्थ किंवा ऐसेही दूसरे किसी पारणसे रखते हैं । इस प्रकारके भक्तोंको यदि दुःख व्यापे तो क्या ऐसा कहा जा सकता है कि भक्ति करने वाले दुसी __ होते हैं। जर भक्ति पुरी जमीही नहीं और ऐसी अवस्था यदि कोई विपत्ति आर्गई, तो किस प्रकार कहा जा सकता है कि भक्ति करने वालोंको विपत्ति आ पैरती है । नर कोई विद्याभ्याम करता है उस समय वह एक पाईभी नहीं कमाता परन उल्टा प्रनिरर्प दोसौ, चारसौ रूपये खर्च किये चग जाता है, ऐसा देखकर कोई पढे फि पिचाभ्यास करने वाले निर्धनी होनाते है, तो क्या यह क्यन चुदिमानोंको मान्य होगा? किमान वेती करता है उस समय सेतमेसे पक दानाभी ग्या नेको नहीं मिलना है, तो इसपरमे क्या ऐसा तात्पर्य निकालना चाहिये कि सेतीमे पानेको अनका दानाभी नहीं मिठता है? पी मनुष्य परमेश्वरसे संग चिन्नयनकी और तो ध्यान नहीं देते, और भय कोई समष्ट आजाता है तो भक्ति दोप देने १, ये पैसी दास्यननर यात है। स्मिी रिदानने कहा है कि - प्रभुताको मरही चहें, प्रभुको चहें न कोय, जो कोई प्रभुको चहें, तो सहजहि प्रभुताहोय ॥
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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