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________________ ( २६३ ) प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देता है, इसलिये यह हे ही नहीं । अपने दिखाई देने वाले जड शरीरमें चैतन्यके नहीं होने की बात अपनेको जिस प्रकार झूठी भासती है, उसी प्रकार ईश्वरके नहीं होनेकी बात भी असत्य क्यों न जानी जावे यह स्मरण रखने योग्य बात है कि प्रत्यक्षरे सिवाय अनुमानसेमी फितना ही बातें जानी जाती है, हेतुको देखकर हम पदार्थका नान कर सक्ते है जैसे किसीका पिता दादा या परदादा मरगया हो तोभी हम अनुमान पर सक्ते है कि टाढा पग्दाढा पिता विना मनुष्यकी उत्पत्ति नहीं हो सक्ति है इस पिपे इस पुरूपके पितादिथे इसी प्रकार ईश्वरके विपयमें भी हम अनुगान द्वारा सिद्ध करके आपको ईश्वरका ज्ञान कगय देते है जिससे फिर आप स्वय अनुभव कर सरगें फि ईश्वरभी अवश्य है अपन सब जानते है कि पानी फे एक दम हजारों सूक्ष्म जतु होते है, परन्तु वे अपनी सुही आग्यास लिई नहीं देने ? इस परमे अपन ऐमा नापि नहीं कह सम्ने कि के ही नहीं, क्या येही जतु सूक्ष्मदर्शक यत्रने तुरत दिखाई देते हैं । वाम असरय परमाणुारा प्रवाह निरन्तर यहा करता है, परन्तु वे अपन को दीगो नहीं है इससे ऐसा कोई नहीं कर सम्ना कि वे नहीं है। यह पान कैसे उचित ठहर
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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