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________________ (२४९) ससे वे कठोर हृदयी वनकर धार्मिक वारतोंसे अपरिचित होनेसे-श्रद्धाहीन, अनाचारी, अभक्ष खानेवाले, दयाकी कम लगनी रखने वाले पनजाते ह जैसा कि हम ईक जैन युवकोंमें देखते हैं कि केवल नाम मात्र जैनी हैं, कारण कि वे अपनी घुद्धिके सामने अपने बुजुर्गोको बुद्धि तुच्छ समझते ह रौकिक कितनेक रीतरिवाजोंसे घृणा करते है दशन, पूजन, गुस्वदन, शाबाग, सामाइस, मतिरमण पदमूल, अमक्ष, रात्रिभोजनादिका त्याग जत पवाग्माण करना आदि अनेक पाते हैं इन बातोंमें तो समझतेही नहीं कोई कहता है तो इसी मजा कम उडार उल्टा उनका निपेप युक्ति पुर्वक करदेते हैंफेवल कमाना और सानापीना मोज मजा उडाना यही उनी का धर्म रहता है । चाहे वे भारतकी उनतीके पियम लेख लिये प्रयत्न करें परन्तु जबतक सुट मुघरे नहीं है तो दूसरोका मुधारा कभी नहीं करसकेंगे रेल फेशनही फेसन और यवनोकी सगतीम निरर्थक जाम खो देंगे और इसी प्रकारकी उन्नती करेंगे जैसा रि एक कविने कहा है'
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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