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________________ ( २८७ ) है इस लिये अन्तमें मैं पुन पाठकोसे प्रार्थना करताह किसी शिक्षाका प्रचार वढाने प्रयल तन मन धनसे करें कि जिससे भविष्यकी प्रजा उन्नती दशाको प्राप्त होरे पुरुषकी शिक्षा पालक जर -५ उपकी क्या होता है तब उसे अपन माता पिता गालामें विधाययनके वास्ते भेजते ह तास वह मानादि गृहकी स्त्रीयोंके ससर्गसे छुटकर अपने समान उपके विद्यार्थी और शिक्षरसे परिचित होता है इस समय जो परम शिशुअगसेही अपनी विदुषी माता द्वारा उच्च सस्कार पापाहुया पार अपने गालाके अभ्यासमें द्वितीया चद्र सदश वृद्धींगत होताहुना उद्यमी, बुद्धिवान, नोतिन, और धमिष्ट उनना जाता है परंतु यह कर जर उसे प्रयमको मापनकी दुइ शिक्षा अनुसर शिक्षापिले तर प्र० आमाल जो शिक्षा सरकारी शाग ना मिलती है वो मतिरल है या अनुरल १ ३० स्तिनेर विषयों में प्रतिक्ल है और उमसे हमारे पालकोंफो धर्म मगधी और व्यवहार सपथी दोनो प्रकारसें हानि पहचती है
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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