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________________ (२४४ ) मनुष्य बालक जवसें माताके उदरसे जन्म धारण करता है तबसें उसके अंदर पुर्वभव अभ्यासानुसार नकल करनेकी शक्ती " Power of Imitation " भी पैदा होजातीहै उसके द्वारा वालक ज्यों २ वढता है त्यौं २ हमारे चाल चलन वर्ताव भाषाका अनुकरण करने लगता है और बालकोको विशेषकर ४-५ वर्पतक अपनी माता, तथा अन्य गृहकी स्त्रीयाक संसर्गमें रहना पड़ता है तो इस अवस्थामें वो अपनी माताके वर्ताव चाल चलन बोलीका अनुकरण करता है और इसी लिये वालकों को प्राथमिक शिक्षाका आरंभ अपनी माताओं द्वाराही होता है. इस अवस्थाका सर्व भार उनोंकी माताओंके उपरही है, और अखिल जिन्दगीका मूल पाया यही अवस्था है; कारण जैसे मृत्तिकाके कुंभ ऊपर रेखादि चिन्ह अपक्व अवस्थामें करदिये जाते हैं वे पकजानेपर कदापिकाल दूर नहीं हो सक्ते, इसी तरह बालकोंका मगज इस आरंभी अवस्थामें बहुत कोमल . रहता है वास्ते इस प्रथम वयमें य अपक्व अवस्थामें जैसे भले बुरे संस्कार बालकोंके मस्तिष्क में जम जाते हैं वे युवावस्था होनेपर कठिनतासे नष्ट होते हैं .परन्तु शोक सह लिखना पड़ता है कि अपने समाजमं स्त्री शिक्षाके पूर्ण अभावसे यह हमारी जिन्दगीका पाया (Found ation of life ) दृढ और संगीन नहीं होने पाता, इसको
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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