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________________ ( २३६ ) चलने वालोंको “जैन " कहते हैं. जो लोग जिनाज्ञा विरुद्ध ___ चलते हैं वे कदापि मोक्षगामि नहिं हो सक्ते हैं और जो मनुष्य जैनी होकर जैन शालोंके प्रमाण माफिक नहि चलते वे सच्चे जैनी नहिं कहे जासक्ते हैं. "जिन शासनका सार क्या है ?" जिन शासनका सार आचारंगादि द्वादशमी है, इसका सार यह है कि देशविरति (श्रावक धर्म) व सर्व विरति' (मुनि धर्म ) चान्त्रि अंगिकार करना अर्थात् प्राणीवध १ नृपावाद २ अदत्तादान ३ मैथुन ४ परित्रह ५ रात्रिभोजन ६ इनका त्याग करना, अथवा चरण सत्तरीके ७० भेद और १ यह स्यावाद सर्वज्ञ जैनधर्म पालन करनेका सर्वज्ञातिके मनुष्यही नहिं किन्तु पशु पक्षी आदिभी अधिकारी हैं यह वात शास्त्रों में प्रकट है. वैश्यादि ज्ञातिके लियेही इस धर्मको साहसकर कह बैठना अनभिज्ञता है. तात्पर्य यह कि चारोही वर्ण सर्व ज्ञातिमेसे कोईथी इस पवित्र धर्मको अंगिकार कर सकते हैं. २ स्थल नागातिपातनत १मृषावादनात २ अदत्तादानव्रत ३ मैथुनबत ४ परिग्रहवत ५ दिग्त्रत ६ भोगोपभोग ७ अनथेदण्ड ८ सानायिकात ९ दिशावकाश १० पोषदोपवास ११ अतिथि संविभाग १२ यह श्रावकके द्वादशवत हैं.
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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