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________________ ( २१८ ) (धेग स्थिर नहीं होती, क्यों कि इसकी चचलता अत्यंत है और यह पापी जगह जगह दोडता है, मगर इसरो सर्पकी तरह सपूरी नहीं आती, जैसे व्यवहारमें कहते है कि मर्पने काट खाया, मगर असली वात सोरे तो खाया क्या। चारे के मुदमें एकभी पाल नहीं आता इस रिये कहा है कि साप ग्वाय ने मुग्वह योयु, सर्प ग्वाता है मगर उसका मुह तो खाली रहनाता है इसी मुवाफिक अत्यन्त पेग घपल मन भरता है मगर तप्णा पूरी नहीं होती ___ हे कुधनाय स्वामी ' आपके शासनमें अनेक मोक्ष अमिलापी ज्ञान ध्यान सहित तपयर्या करते हैं और मनको वश करने के लिये प्रयत्नभी फरते है मगर स्वात्माका म्वरूप प्रगटाने वाले महामुनिको यह पापी मन ऐसी दुशमनारसे प्रपच जाग्में डार देता है रि पिना प्रयाससे भाभ्रमण करते फिरो प्यारे वाचक ? आपो मालुम होगा कि मनापी दुसमनने श्री प्रसनचद्र रानपि पर फैसी जाल रचीथीयह दृष्टान पाठौर समानार्थ सोपसे नीचे दरज परता श्री क्षितिमतिष्ठिन नामक नगरमें विशाल भुजाल्वाले महागन शमनमें गुमर और न्यायके नमूने मिनी गोमा अन्तरिम्तीर्णरोमानयी ऐसे श्रीमसनद राजारातपरतये पया वीरभगवानको ममरसपं मुनकर मममनट गना बदन
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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