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________________ ( १८० ) महिनोंके महिने तक दिनये २-४ चार २ वार रोना शुरू रहता है. सालमन तक उसके सगे सोई उसके यहां जाने आते हैं और वेचारे पर खर्चका भार डालते हैं, फिर चाहे वह धनवान हो कि धनहीन, पर सगेसोई तो उसके घरवालोंको रुला कूटाके खा पी कर चले जाते हैं, धन्य है रूढी! वर्तमान कालमें रोने कूटनेकी चाल तो बहोत ही जरूर वान होगई है. जोर २ से रोना और हृदयको कूटते वक्त औरताको शोकसे ज्यादा यह विचार होता है कि ठीकतोरसे रोती कूटती हूं कि नहीं? मुझे कोई मूर्ख नो न कहेगा. इस परसे स्पष्ट ज्ञात होता है कि हालका रोना कूटना फक्त लोगोंको दिखानेके वास्ते ही. ___ मनुप्यपर रोने कूटनेमें भाग लेते हैं, कितनेक पुरुष सुर्दे पिछे जोरसे रोते चले जाते हैं और दूसरे लोग उनकी हँसी करते हैं, स्त्रियोंसे पुरुष ज्यादा ज्ञान रखते हैं और स्त्रियोंसे रह होनेपरभी ऐसे रिवाज चलाते हैं यह बहोत शरम की बात है. है परमेश्वर ! वह दिन कब आवेगा कि रोने कूटनेसे जो गैरफायदे होते हैं वो मेरे जैन वन्धु जान ले. रोने पीटनेसे होनेवाले गैरफायदे. शोक याने चिन्ता और चिन्ताको शाहमें राक्षसकी उप___ मासे बुलाते हैं. नीति शास्त्रमें कहा है कि
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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