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________________ ( १६८) उलटे रस्ते भेजकर मनुष्यको भ्रष्ट काती है. इसीर जैन बांधव उलटे रस्ते चले और अन्य लोगोंके देखे देवी उनके अनुसार कार्य करने लगे. एक समय ऐसाथा शि अपना चीन अवलोकन कर अन्यधनी अनुकरण करतेथे. और आज ऐसा आया कि अपने जैनक्षी बांधत्र अन्न धाराशा अनुकरण करते हैं यह कितने अफनोएकी बात किलोगोंकि. इतनी असमय हानेका कारण क्या !! अपन अपने पांव होने घरभी दूसरों के पैराले चलने लो इसका मतन्त्र क्या है ? यही हैं कि विद्याका अभाव ____ मान्यवरो! अब उस समयके जानेका वक्त आया है, अपिघाने भागनेकी तक साथी है और वहम आदि अधकारके नाश होनेकी तय्यारी है. प्रधानकी विद्या, शक्ति और नीति निलाने का समय नजदीक आया है. इस लिये छुदय दाबको ! ऐसे नुसमयका लाभ लेने के लिये एक मतसे उठो ! ऐसे एक नहीं परन्तु अनेक दुष्ट रीतियोंको नावुद करने के लिये निबन्ध लिखनेकी अत्यन्त आवश्यकता है इसलिये मै आशा रखना हुँ कि मेरे स्वधी भाई इस विषयमें परिश्रम कर मुझे आमारी करें. ___ शोक, रुदन और छाती कूटना-ये तीन आर्स ध्यानवाली जैनोकी प्रवृतियां हैं-गोक यह मानसिक प्रवृत्तिहै-याने चिन्ता
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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