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________________ ( १६४ ) ___ सर होनेका संभव है। _ विपेश करके यह रिवाज अटकाने संबंधों अपने मुनिराजोंको खास आग्रहपूर्वक विनंति करनी जरत है यह इसी लिये है कि उनके उपदेशले अग्रेसर अपने कर्तव्यको करना सीखेगे. ___ अपनी जैन कोयमे बहोतो ती दुरुप ज्ञान नहीं परन्तु श्रद्धारो मेमके साथ मानते हैं । वह उपदेन सुनिहारान एक शहरमें मृत्यु के बाद जीमनवार कम करनेका उपदेश देंगे तो पहिले तो चितोक ( श्रावक ) आगवान सिडकमें कि यह दया सुनिगज ऐसा उपदेश देते है चोरः शब्दोरो निदा ने. तोभी उनके भी आगेबान और समरते हुने शावक का उपदेश ग्रहण करेंगे, और फिर दुसरो वक्त जब दूसरे अनि राज ऐसाही उपदेश देकर समायो, तर आमेसे मुनिराज को अवगणना करनेवाले आवानो समझेगे के पहिले सुनिताक जो बात करनये वह सत्य ज्ञात होती है. अपनमें दूसरोकी तरह ___ उपदेश न माना इसमें भूलकी है, इसी तरह मुनिराजोंने जैन्द कोमकी दुःखदाई स्थिति अपने अन्तःकरनमें लाकर इस दुष्ठ रिवाजसे गरीबों के घरबार विकाते हैं, विधवाओंकी जीवनदोरी तूट जाती है, इदय खेदित होतेवक्त लड्डु जलेबी पापडं सेव चबा चब खाने वालोंकी बुद्धि मलिन होती है, पेटभरुओंके
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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