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________________ ( १५९) (जैन ता. ४-१०-८) मृत्युके बाद चुक्ता जैनोके वास्ते निषेध है इतनाही नहीं परन्तु अन्य दर्शनीय जो मृत्युके बाद प्रेतावस्थाको मानते हैं और मेतका श्राद्ध करनेसे उद्धार हो ऐसा मानते हैं उनके भागभी मृत्युके पीछे ज्ञातिभोजन करने करानेकी खास विधि नहीं है मनुस्मृति, फहाहै किदौ देवे पितृकार्ये त्रीनेकैकमुभयत्र वा। भोजयेत् सुसमृद्धोपि न प्रसेज्जेत विस्तरे ॥१॥ सक्कियां देशकालौच शौच ब्राह्मणसपद । पचैतान वित्तरोहन्ति तस्मान्ने हेत विस्तरम् ॥२॥ न श्राद्धे भोजयन्मित्र धनै कार्योऽस्य संग्रह । नारि न मित्र यविद्या त्त श्राद्धे भोजयेद दिजम्॥शा य सगतानि कुरुते मोहाच्छा न मानव । सस्वर्गाच्च्यवते लोकाच्छामित्रो दिजाधमा ॥४॥ ___ अच्छी समृद्विवाला हो उसको देवनिमिच दो और पित कार्य जाह्मण जिमाना अथवा ऊपर कहेहुवे दोनो निमित्तम एक२ ब्रामण जिमाना, विस्तारमें अशक्त होना चाहिये (अर्थात् ब्रह्मभोगनको इससे ज्यादा बहाना नहीं),
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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