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________________ ( १३८ ) करिव तीनसो श्लोक वृद्ध वयमेंभी लिख सक्तेथे. अक्षर आपके मोतीयोंके दाणोंके समान मुंदरथे. लिखनेका इतना प्रेम होनेपरभी एक अक्षर तक विक्रय नहीं किया. आपके कर कमलों द्वारा लिखीहुई कई पुस्तकें इस समय हमारे पास मौजूद है । मंथावलोकनकाभी आपको कम प्रेम नहीथा. एकनएक ग्रंथका अवलोकन करतेही रहनेथे. आपकी संस्कृतके सभी विषयोंमें अच्छी गतिथी. क्लिष्टसे बिलट काव्य क्यों न हो-आप वरावर उसका अर्थ कर बतलातेथे. योग विषयमें आप ऐसे प्रवलथे कि-यम-नियमादि अष्टांग योग क्रिया उनकी स्पर्धा करनेवाला हमारे देखनेमें आजतक कोई नहीं आया. आप हमेशा योगमेंही तल्लीन रहतेधे. नमाद तो आपके निकट तक नहीं आताथा. आपका देहपात वि० सं० १९६७ के मार्गशिर्ष वदी ८ प्रमी गुरुवार को दिनके तीन बजेहुआ. आपने अपने वृहल्शिष्य बालचंद्रको कईमास प्रथमही यह कह दियाथा कि, अब हमारा यह शरीर थोडेही दिनोंका है. उक्त शिप्यने आपकी चिरायुकी आशा करके कहा कि, महाराज ! आपके शरीरमें किसी प्रकारकी आधि व्याधि नहीं हैं, अतएव आपके शरीरका पांच वर्ष कुछबी नहीं बिगडेगा. शिष्यको धैर्य रखवाने के कारण आपने कहा, तो अच्छा है ! परंतु वेटा कभी तो जानाही है, इसका क्या हर्ष और क्या शोक ! वात वही हुई, थोडेही महीनोंके पश्चात् इस लोकको
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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