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________________ (१२५) पार्योंहै ।' गुरुपदके आप पूर्ण भक्तथे सवत् १९१६-१९१७ के दो चातुर्मास पोहोकरण किये। वहा गुरमहाराजने स्वप्नमे आपको वह प्रगन किवा कि “जा-देव-गुरु और धर्मके प्रसादसे __ तुझे नपण्ड मुख रहेगा, तेरे हायसें अन्छे २ धर्मोन्नति के कार्य होगे, और तेरा नेज-पूज और गिप्य प्रशिप्यकी रद्धि होगी, __ और जो जो मेरे कुशिष्यहैं जो कदाग्रह कररहे है उनका अतम नाम निशानतक नहीं रहेगा अर्थात् निर्वश होजावेगे" इस स्वप्नके योडो दिनोके बाद और आपके सद्गुणोंके पश पहोकरणाधिपति श्रीमान् ठाकुर सहार भभुतसिंहजीने आपण आदर सत्कार मशसनीय दिया और एक पटा लिख दिया उममी नकल हम यहापर उद्धृत करते है । पट्टेकी-नकल श्रीपरमेश्वरजी MARALA ठाकुर साहेबके कचेरीफी महोर यहा AAAAA सवतश्री टाकुरा रानश्री वभुतसिंहनी लिखापत वाने
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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