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________________ सुख दुःखका अनुभव अलादा अलादा हरएक शख्सको होता है इसलिये इनके कारण पुण्य पापकोभी अलादा अलादा मानने चाहिये ! इस बातका ध्यान करानेके लिये अलादा उल्लेख किया गया है कर्मको नहीं मानने वाले नास्तिक और वेदान्तिकोंका कहना है कि आकाशके फूलकी तरह पुण्य पाप नामकेभी कोइ पदार्थ इस दुनियामें नहीं है. वेदान्तिक सिदाय एक ब्रह्मके और किसीको नहीं मानते ! नास्तिक सिवाय भूतोंके किसीको नहीं मानते हैं इस लिये येह दोनों मतवाले परलोक पुण्य पाप आदि पदार्थोंको नहीं मानते हैं. मगर इनका यह कथन विलकुल असत्य है क्योंकि मनुष्यत्व जातिकी समानता होने परभी एक राजा एक प्रजा एक शोकी एक भोगी एक हजारोंका पालन कर्ता है एक अपने भेट भरनेको भी असमर्थ होताहै एक निरोग शरीर और एक रोग ग्रहस्त होताहै इत्यादि विचित्र रचना क्यों हो रही हैं वस इसीसे सावित है कि इन सुख दुःखोंका कारणभूत पुण्य पापभी जरूर होने चाहिये ! और पुण्य पापके भोगस्थान मुख दु___ खात्माक स्वर्ग नर्क गति प्रमुखभी जरूर होने चाहिये पुण्य पापकी सिद्धिमें अनुमान नीचे मूजव समझें ! सुख दुःखे कारण पुर्वके, कार्यत्वात् , अङ्कुरवत् । येचतयोः कारणे.ते पुण्य पापेमन्तव्ये, यथाङ्करस्य बीज।
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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