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________________ करनेवाले को गणी या प्राचार्य कहते है । गणि-पद से गणधर, प्राचार्य और गणी तीनों का ग्रहण हो जाता है। जो साधुनों के प्राचार-विचार का ध्यान रखता हुआ देश के कोने-कोने मे धर्म-प्रचार करता है, वह गणी है, उसमें जो विशेषताएं होनी चाहिए उन्हें सम्पदा कहते है। जैसे राजा पाच प्रकार की निधियों-धन-निधि, धान्य-निधि, पुत्रनिधि, मित्र-निधि और शिल्प-निधि का स्वामी होता है, वैसे ही गणि या आचार्य को आठ सपदानो से सम्पन्न होना चाहिये, है जैसे कि १. प्राचार-सपदा-प्राणीमात्र के लिये अन्न-जल की तरह सदाचार भी परम आवश्यक है। प्राचार-संपत् आत्मा की सदैव सहवर्तिनी होती है। चारित्र मे दृढ़ता का होना ही प्राचार है। सयम की सभी प्रक्रियामो मे मन, वचन और काया को स्थिरतापूर्वक संलग्न रखना, विनीत भाव से रहना वर्षावास के अतिरिक्त कही भी कल्प-मर्यादा से अधिक न ठहरना, क्योकि अधिक ठहरने से सयम मे प्रमाद एव शैथिल्य आ जाना स्वाभाविक है, किसी भी स्थिति में चंचलता न आने देना, गंभीर एव मधुर स्वभाव रखना, यही है प्राचार्य की प्राचार-सम्पदा । २. श्रुत-सम्पदा-सदाचारी का ही श्रु तज्ञान प्रशसनीय होता है, वस्तुत: सदाचारी ही श्रु तज्ञान का अधिकारी होता है और वही उसकी सुरक्षा कर सकता है । वैदिक [चतुर्धे प्रकाश
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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