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________________ प्राप्त कर सकता है और वही साधु समुदाय को मर्यादा में रख सकता है। स्वयं मर्यादा मे रहने वाला तथा दूसरो को मर्यादा में रखनेवाला उच्च साधक ही आचार्यत्व को प्राप्त करने का अधिकारी होता है । जैसे कि - १. सड्डि-पुरिसजाए-जिसको जिन-वाणी पर, शास्त्र-समाचारी, गण-समाचारी एव नव तत्त्वों पर दृढ श्रद्धा हो, स्थावर जीवो पर आस्था हो, महाव्रतों पर पूर्ण विश्वास हो, वही आध्यात्मिक नेता व्यवस्थित रूप से समाज का मचालन कर सकता है। श्रद्धाहीन स्वय भी डूबता है औरों को भी डुबाता है, और श्रद्धावान स्वयं मर्यादा मे रहता है तथा दूसरो को भी मर्यादा मे रखता है। २. सच्चे पुरिसजाए- सत्यवादी एव प्रतिज्ञा-शूर मुनिवर ही गण का सरक्षक होता है । उसी के वचन ग्रहण करने योग्य होते है और जनता के लिये वही विश्वास-पात्र होता है । जो सदैव इस बात का ध्यान रखता है कि कभी मेरे से असत्य भाषा, मिश्र भाषा या न बोलने योग्य सत्य भाषा भी मेरे मुख से न निकले, कभी काय से असत्य व्यवहार भी न हो पाए, प्रतः सदा अप्रमत्त रह कर सत्यवादिता की रक्षा करनेवाला ही गण का संचालन कर सकता है। ३. मेहावी परिसजाए-जिसमें श्रुतग्रहण करने की शक्ति है वह अपनी सूझबूझ के अनुसार मनोवैज्ञानिक पद्धति से दूसरो को मर्यादा में चला सकता है और स्वयं मर्यादित चतुर्थ प्रकाथ
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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