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________________ क्षय होने से प्रकट होता है। अनन्त शक्ति प्रात्मा का वह विशेष बल है जिसके द्वारा आत्मा अपने पूर्ण स्वरूप में विकसित हो जाता है । छोटी-बड़ी सभी विघ्न-बाधाओं को समर्थ आत्मा ही नष्ट करके पूर्णता को प्राप्त कर सकता है । असमर्थ तो उनसे दब जाता है, वह कभी भी लक्ष्य की ओर अग्रसर नही हो पाता, अत: अन्तराय कम के क्षय होने से ही सिद्धत्व प्राप्त किया जा सकता है। __ इन आठ गुणों मे पहला, दूसरा, चौथा और पाठवां ये चार गुण आत्मा मे अरिहन्तत्व अवस्था के पहले समय में ही प्रकट हो जाते है, शेष चार गुण सिद्धत्व प्राप्ति के पहले समय मे उदित हो जाते है। इस प्रकार आठ कर्मो के क्षय करने से आठ महागण प्रकट होते है। उन आठ महागुणो से सम्पन्न आत्मा ही सिद्ध कहे जाते है । सिद्धों के इकत्तीस गुण आगमों में सिद्धों के इकत्तीस गुणो का उल्लेख भी मिलता है, जैसे कि १. क्षीण-अभिनिबोधिक-ज्ञानावरण, २. क्षीण-श्रुत ज्ञानावरण, ३. क्षीण-अवधि-ज्ञानावरण, ४. क्षीण-मन:पर्याय-ज्ञानावरण, ५. क्षीण-केवल-ज्ञानावरण, ६. क्षीण-चक्षुदर्शनावरण, ७. क्षीण-अचक्षुर्दर्शनावरण, ८, क्षीण-अवधिदर्शनावरण, ९. क्षीण-केवलदर्शनावरण, १०. क्षीण-निद्रा, [ तृतीय प्रकाश
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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