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________________ गुण को दूसरे शब्दो मे अटलावगहना भी कहा जाता है। स्थिति के साथ ही उनकी अवगहना भी नियत हो जाती है। जबकि ससारी आत्माओ की अवगहना अनियत होती ६. अरूपित्व-यह वह गुण है जो नामकर्म के क्षय से प्रकट होता है । नामकर्म के अस्तित्व मे ही शरीर का अस्तित्व है । जहां शरीर है वहा रूप, रस, गध, स्पर्श और सस्थान आदि का होना निश्चित है, क्योकि स्थूल शरीर का उत्पादक भी नाम-कर्म ही है । इस कर्म के अभाव मे अरूपित्व का होना स्वय-सिद्ध है । सिद्धो का नाम कर्म सर्वथा क्षय हो जाता है, वे शरीर-रहित होने से अरूपी होते हैं। ७. अगुरुलघत्व-इस का अर्थ है न हल्का न भारी। उच्च गोत्र कर्म के उदय से आत्मा को ऊचापन और नीच गोत्रकर्म के उदय से नीचापन प्राप्त होता है। सिद्ध भगवान दोनों तरह की अवस्थाओं से रहित है, अथवा गोत्रकर्म के क्षय से आत्मा को उस उस गुण की उपलब्धि होती है जिस मे सिद्ध भगवान के सभी गुण अपने-अपने सामान्य तथा विशेष स्वरूप से च्युत नहीं होते और अपने-अपने स्वरूप मे अवस्थित रहते हुए भी परभाव या वैभाविक तत्त्वो के स्वरूप को प्राप्त नहीं करते। यही उनका अगुरुलघुत्व गुण है। ८. अनन्त शक्ति-यह गुण अन्तराय कर्म के सर्वथा नमस्कार मन्त्र [४३
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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