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________________ १०. अरिहन्त भगवान के सम्मुख प्राकाश मे बहुत ऊंचा हजारो छोटी-छोटी पताकारो से सुशोभित महेन्द्र ध्वज चलता है। ११. अरिहन्त भगवान् जहा विराजते है, वहा उसी समय पत्र-पुप्प, पल्लव से परिमण्डित छत्र, ध्वज, घण्टा और पताका सहित अशोक वृक्ष प्रकट हो जाता है । १२. अरिहन्त भगवान् के कुछ पीछे मस्तक के पास अति देदीप्यमान प्रभामडल होता है । १३. अरिहन्त भगवान् जहा विचरते है वहां का भूभाग बहुत समतल एव रमणीय हो जाता है। १४. अरिहन्त भगवान् जहां विचरते है, वहा सभी काटे अधोमुख हो जाते है। १५. अरिहन्त भगवान् जहा विचरते है, वहां का वातावरण सुहावना एव अनुकूल हो जाता है। १६. अरिहन्त भगवान् जहां विचरते है, वहां सवर्तक वायु द्वारा एक योजन प्रमाण क्षेत्र चारो ओर से साफ एव शुद्ध हो जाता है। १७. अरिहन्त भगवान् जहां विचरते हैं, वहां आवश्यकता नुसार मेघ बरस कर आकाश एवं पृथिवी मे रही हुई धूलि आदि को शान्त कर देते है । २४] [द्वितीय प्रकाश
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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