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________________ चौंतीस अतिशय : १. अरिहन्त भगवान के शरीर के रोम और नख बढ़ते नही, बे सदैव अवस्थित रहते है । २. अरिहन्त भगवान् का शरीर सदैव स्वस्थ एव तेजोमय रहता है। ३. अरिहन्त भगवान् के शरीर मे रक्त गाय के दूध के समान मधुर और श्वेत होता है । ४. अरिहन्त भगवान् का श्वासोच्छ्वास पद्म एव नील कमल के समान सुगन्धमय होता है। ५. अरिहन्त भगवान् का आहार-नीहार प्रच्छन्न होता है, इन आखो से वे आहार-नीहार करते हुए दिखाई नही देते। ६. अरिहन्त भगवान् के आगे अाकाश मे धर्म चक्र रहता है, जिससे वे धर्म-चक्रवर्ती कहलाते है। ७. अरिहन्त भगवान् के ऊपर एक के ऊपर एक तीन छत्र होते है, जिस से वे त्रिलोकीनाथ कहलाते है । ८. अरिहन्त भगवान् के दोनो ओर देवता मनोहारी श्रेष्ठ चमर ढुलाते है। ९. अरिहन्त भगवान के लिये आकाश मे स्फटिक के समान स्वच्छ मणियो से जड़ा हुआ पादपीठ सहित सिहासन होता है। नमस्कार मन्त्र] [२३
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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