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________________ मन, वचन और काया को अशुभ-प्रवृत्तियों से हटाकर शुभ मे लगाना, क्रमश: मन-विनय, वचन-विनय और कायविनय है। पूज्यजनों के पास रहना अभ्यास में प्रवृत्ति रखना बड़ों की इच्छानुसार कार्य करना, ज्ञान-प्राप्ति के हेतु गुरुजनो को साता पहुचाना, उनके द्वारा किये हुए उपकारों का वथाशक्य ऋण उतारना, उनके प्रति हृदय से कृतज्ञ बनकर रहना एव दूसरे का ध यवादी होकर रहना, दुखित प्राणियों की सार-सम्भाल करना, देश एव काल देखकर कार्य करना, सब कार्यों में गुरु महाराज के अनुकूल प्रवृत्ति करना इत्यादि समस्त प्रवृत्तियो को लोकोपचार-विनय कहा जाता है। ज्ञान-विनय दर्शन-विनय, चारित्र-विनय मन-विनय, वचन-विनय, काय-विनय और लोकोपचार-विनय विनय के इन सात भेदों में ही धर्म का सर्वस्व निहित है। अरिहन्त भगवान धर्म के साक्षात् रूप होते हैं, अत. इस सप्ताक्षरी मन्त्र मे विनय रूप धर्म के साक्षात् दर्शन किये जा सकते है । भगवान् अरिहन्त मोक्षमार्ग के प्रदर्शक होते हैं। उनका प्रवचन भव्य प्राणियो को मोक्ष मार्ग-दिखाने मे प्रकाश-स्तम्भ का कार्य करता है। अत: यह सप्ताक्षरी मन्त्र विनय के सात भेदों की आराधना-पालना करने के लिये प्रेरित करता है। १६ 1 [ द्वितीय प्रकाश
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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